Import Export एक्सपोर्ट इंपोर्ट



Import Export एक्सपोर्ट इंपोर्ट

ऐसे बहुत से कारोबार हैं, जिनमें आप अपने हाथ आजमा सकते हैं। ऐसा ही एक धंधा है एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का। इसकी खास बात यह है कि इसमें आपको बहुत कम इनवेस्टमेंट के साथ देश-विदेश घूमने का भरपूर मौका मिलेगा। आपके विदेश भ्रमण को सरकार सब्सिडी भी देगी। एक्सपोर्ट के बिजनेस पर पूरी जानकारी दे रहे हैं भुवन भास्कर:

*क्या है एग्जिम बिजनेस*
- देश में कई ऐसे छोटे मैन्युफैक्चरर हैं, जो अपना माल विदेश में बेचना चाहते हैं, लेकिन उनके पास इतने साधन नहीं हैं कि वह इसे अंजाम दे सकें।
- विदेश में देश की बनी कई वस्तुओं की काफी मांग है, जिनके लिए वहां के कंस्यूमर अच्छी कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं।
- इसी तरह विदेश की कई वस्तुओं की भी देश में काफी मांग है, जबकि उन वस्तुओं के विदेशी मैन्युफैक्चरर्स उन्हें खुद यहां एक्सपोर्ट नहीं कर पा रहे।
- हर बिजनेस की तरह एक्सपोर्ट और इंपोर्ट में भी आपको इन डिमांड को सप्लाई से मिलाना है और कुल माल में आपका कमिशन पक्का।

*कैसे गुण जरूरी*
- आप को कुशलता के साथ चीजें मैनेज करने की कला आनी चाहिए, क्योंकि इस धंधे में छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना जरूरी है।
- आपके अंदर अपनी बातों और व्यवहार से दूसरों का भरोसा जीतने की क्वॉलिटी होनी चाहिए।
- अपना माल बेचने का हुनर होना चाहिए।

*पुख्ता होमवर्क जरूरी*
- आप अपने कारोबार की शुरुआत घर में बैठकर एक फोन के साथ कर सकते हैं।
- आपको डेटा रखने के लिए बस एक कंप्यूटर, बिजनेस कार्ड और फैक्स मशीन की व्यवस्था करनी होगी।
- इस बिजनेस में आपका लेटर हेड खास अहमियत रखता है। निजी रिश्ते डिवेलप होने तक आपका लेटर हेड ही आपकी कंपनी की पहचान होता है। लेटर हेड सुंदर, सादा और प्रफेशनल दिखना चाहिए।
- आपके बिजनेस कार्ड्स, लेटर हेड से आपकी इंटरनैशनल कॉरपोरेट इमेज झलकनी चाहिए। इसके लिए कंपनी के नाम के आगे देश का नाम जोड़कर लिखें मसलन इंडियन ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड।
- बिजनेस कार्ड, लेटर पैड और बिजनेस कम्यूनिकेशन स्टेशनरी पर छपे अपने कॉन्टैक्ट डिटेल में इंटरनैशनल कोड यानी +91 जोड़कर भी इस इमेज को पुख्ता किया जा सकता है।
- कंपनी बनाने और एक्सपोर्ट मटीरियल पर फैसला करने के बाद यह पता करना चाहिए कि आपकी मदद के लिए कौन-सी सरकारी स्कीम या संस्थाएं हैं।
- कई बार आपके आसपास ही ऐसी कंपनियां होती हैं, जो वही प्रॉडक्ट विदेश में बेचती हैं, जो आप बेचने जा रहे होते हैं। ऐसी कंपनियों से बातचीत करें।
- इस कारोबार में चूंकि आपको अपने देश के साथ-साथ दूसरे देश के कानूनों का भी ध्यान रखना होता है, इसलिए आपको लाइसेंस, एक्सपोर्ट परमिट की जरूरत हो सकती है। इसकी जानकारी आप इंडस्ट्री से जुड़े लोगों, संबंधित एक्सपोर्ट अथॉरिटी और विदेशी व्यापार कानून के वकीलों से जान सकते हैं।
-आपको ट्रेड और डिलिवरी की शर्तों, अंतरराष्ट्रीय पेमेंट के तरीकों, अंतरराष्ट्रीय व्यापार मूल्यों को समझना चाहिए और ऐसी शर्तें चुननी चाहिए, जो फायदेमंद हों।
- कंपनी बना लेने के बाद सबसे बड़ी चुनौती अनुभवी लोगों को नौकरी पर रखना और अपने स्टाफ को प्रशिक्षण देना है। आपके हर स्टाफ को यह समझना चाहिए कि वह एक ग्लोबल कंपनी का हिस्सा है और उसे अपने कामकाज में वही लेवल मेंटेन करना चाहिए।

*इंपोर्टर एक्सपोर्टर कोड (IEC)*
- एक्सपोर्टर या इंपोर्टर के तौर पर भारत सरकार से मान्यता लेने के लिए आईईसी लेना अनिवार्य है।
- इसे विदेश व्यापार महानिदेशालय, नई दिल्ली से 1,000 रुपये की ऐप्लिकेशन फीस देकर हासिल किया जा सकता है। फीस पे ऑर्डर या डिमांड ड्राफ्ट के जरिये जमा की जानी चाहिए। पे ऑर्डर या डिमांड ड्राफ्ट जोनल जॉइंट डीजीएफटी के फेवर में होना चाहिए।
- आईईसी में मॉडिफिकेशन के लिए कोई फीस नहीं लगती, अगर इसकी सूचना 90 दिन पहले दे दी जाए।
- डुप्लिकेट आईईसी के लिए 200 रुपये फीस लगती है।
- आईईसी का फॉर्म www.dgft.gov.in पर ऑनलाइन भरा जा सकता है।
- आईईसी का फॉर्म भरने के लिए पैन कार्ड होना अनिवार्य है। यह दो दिनों में बन जाता है और स्पीड पोस्ट से भेजा जाता है।
- रजिस्ट्रेशन नंबर हासिल करने के लिए आपको कस्टम्स एंड टैक्सेशन डिपार्टमेंट से संपर्क करना होगा।
- कुछ खास सेंसिटिव प्रॉडक्ट्स, जैसे दवाएं, शराब, केमिकल, हथियार, कुछ खास तरह के फूड आइटम और कुछ खास तरह के कपड़ों के एक्सपोर्ट या इंपोर्ट में आपको लाइसेंस की जरूरत पड़ सकती है। इसके लिए डीजीएफटी से पूरी जानकारी जरूर हासिल कर लें।

*पार्टनर्स का चुनाव*
- इस बिजनेस में आपका सबसे अहम साथी बैंक है, इसलिए आपको किसी ऐसे बैंक का चुनाव करना है जो आपका इंटरनैशनल कारोबार हैंडल कर सके।
- यह बैंक आपको विदेश दौरों पर बिजनेस के सिलसिले में जाने पर न केवल कैश की चिंता से मुक्त कर देगा, बल्कि आपके लिए क्रेडिट मैनेजर का भी काम करेगा।
- अगर आपने अपनी साख बरकरार रखी, तो बैंक आपके सौदों के सिलसिले में अहम सलाह और रेफरेंस भी देगा।
- जब आप विदेशी कंपनियों के साथ बातचीत शुरू करें तो उनके सेल्स रिप्रजेंटेटिव्स से भी बेहतर संबंध बनाने पर ध्यान दें।
- अब आपको ऐसे लोकल मैन्युफैक्चरर्स से संपर्क करना है, जो अपने प्रॉडक्ट विदेशों में बेचना चाहते हैं लेकिन सीमित डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क के कारण खुद ऐसा नहीं कर पा रहे। उन्हें भरोसा दिलाएं कि आप उनके प्रॉडक्ट की डिमांड वाले कई विदेशी क्लाइंट्स और बाजारों को जानते हैं और आप उनके सोल एक्सपोर्ट एजेंट हो सकते हैं। आप उनके तमाम पेपरवर्क, शिपिंग, कस्टम और फॉरेन डिस्ट्रिब्यूशन की जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं।
- इसके बाद आप कंपनी का माल एक्सपोर्ट करने के लिए लीगल एग्रीमेंट करेंगे।
- अब आपके निर्माता और खरीदार दोनों के साथ कॉन्ट्रैक्ट हैं और आप काम शुरू करने के लिए तैयार हैं।
कॉन्टैक्ट्स बनाने के तरीके
यहां जीत का कोई शॉर्ट कट नहीं है। हां, फॉर्म्युला जरूर है- कॉन्टैक्ट्स। तो कॉन्टैक्ट्स बनाने के तरीके ये हैं:
- देश में दूसरे देशों के कॉन्सुलेट्स होते हैं, जिनमें कमर्शल अटैची होते हैं। इनका काम यहां अपने देशों के कमर्शल इंस्टिट्यूशंस के आउटलेट्स स्थापित करना है। ये अटैची आपको अपने देशों के इंपोर्ट-एक्सपोर्ट एंटरप्राइज ढूंढने में मदद कर सकते हैं। कॉन्सुलेट एक तरह के छोटे एम्बैसी होते हैं, जो छोटे-छोटे डिप्लोमैटिक काम और ट्रेड संबंधी कामकाज निपटाते हैं। दूसरे देशों के भारत में कॉन्सुलेट, दूतावासों की लिस्ट india.gov.in/overseas/embassies पर देख सकते हैं। यहां दूसरे देशों में भारतीय दूतावासों की लिस्ट भी मिल जाएगी।
- दूसरे देशों में मौजूद भारतीय दूतावास भी कॉन्टैक्ट्स हासिल करने और उनकी जांच का केंद्र हो सकते हैं। यहां से आप किसी विदेशी कंपनी की साख और वित्तीय स्थिति का जायजा ले सकते हैं।
- जिन शहरों से एक्सपोर्ट शुरू करना चाहते हैं, वहां के चैंबर्स ऑफ कॉमर्स आपके लिए कॉन्टैक्ट्स हासिल करने का अहम जरिया हो सकते हैं।
- कॉन्टैक्ट जुटाने का काम करते समय आपको चुनिंदा होना चाहिए। आप कौन से प्रॉडक्ट कहां बेचना चाहते हैं और कहां से कौन सा प्रॉडक्ट लाना चाहते हैं, इस बारे में आपको सिलेक्टिव होकर फैसला करना चाहिए। पूरी दुनिया को अपने पहलू में समेटने के चक्कर में न पड़ें।
- इसके बाद जुटाए गए तमाम कॉन्टैक्ट्स पर चिट्ठी लिखें। इसमें अपनी कंपनी का परिचय देते हुए आपके काम के लिहाज से सही फर्म का नाम और पता बताने का अनुरोध करें।
- कॉन्सुलेट्स, दूतावासों और चैंबर्स से अनुरोध करें कि वे अपने मासिक बुलेटिन में आपका नोटिस छापें।
- इस प्रक्रिया के बाद आपको जिन कंपनियों के नाम मिलते हैं, उन्हें आप फिर से एक लेटर लिखें।

*बाजार का चुनाव कैसे करें*
- आपको दुनिया के बाजारों पर पूरी नजर रखनी होगी।
- विश्व व्यापार के बारे में जो भी मिले, पढ़ जाएं। ट्रेड पब्लिकेशन, इंटरनैशनल मैगजीन और फाइनैंशल रिपोर्ट - सब पर नजर रखें और जानें कि कहां क्या बिक रहा है।
- रुपया और डॉलर के एक्सचेंज रेट पर नजर रखनी चाहिए और यह समझना चाहिए कि कोई प्रॉडक्ट किस भाव पर यहां के कंस्यूमर्स खरीदना शुरू कर देंगे और किस भाव पर कोई प्रॉडक्ट विदेशी बाजारों में आकर्षक हो जाएगा।
- एक्सपोर्ट कारोबार शुरू करते वक्त एक महत्वपूर्ण मसला बाजार का चुनाव होता है। आपको अपने प्रॉडक्ट से जुड़े फोरम, असोसिएशन और एक्सपोर्ट अथॉरिटी से बातचीत कर सही बाजार का चुनाव करने में मदद मिल सकती है। इसमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर एसोचैम और सीआईआई जैसी संस्थाओं की रिपोर्ट मददगार हो सकती हैं। बाजार का चुनाव करते वक्त इन बातों पर ध्यान केंद्रित करें:
- बाजार की जरूरतों की जानकारी,
- अपने टार्गेट कस्टमर का आकलन
- अपने कारोबार के प्रतिस्पर्द्धियों के बारे में जानकारी

*ट्रेंड और मिजाज की समझ*
- एक्सपोर्ट मार्केट को समझने में एक महत्वपूर्ण बात उसके ट्रेंड और मिजाज को समझना है। हो सकता है, ब्रिटेन में कोई पैकेजिंग खूब सफल हो, लेकिन मलयेशिया में उसी पैकेजिंग को कोई खरीदार न मिले। अगर आप एक ही प्रॉडक्ट चार मार्केट्स में एक्सपोर्ट कर रहे हैं, तो आपको चारों के ट्रेंड को अलग-अलग समझना होगा। इसके साथ ही उन बाजारों में प्रतिबंधित इंग्रेडिएंट्स और लोकल ग्रेड्स के हिसाब से अपने प्रॉडक्ट में बदलाव भी करना होगा।
- होमवर्क पूरा करने के बाद समय है निजी तौर पर बाजार का जायजा लेने का। टार्गेट मार्केट, कंस्यूमर और उनकी जरूरतों को निजी तौर पर महसूस करना जरूरी है और इसके लिए आपको वहां जाना चाहिए। वहां आप अपने संभावित खरीदारों के साथ मीटिंग करें और प्रॉडक्ट बेचने वाले स्टोर्स में घूमें। अपने प्रतिद्वंद्वियों के प्रॉडक्ट्स की कीमतों का जायजा लें। अपने एक्सपोर्ट मार्केट के इतिहास, भूगोल और भाषा की भी थोड़ी जानकारी हासिल करें।

*ट्रांसपोर्टेशन का इंतजाम*
- एक बार सब कुछ तय हो जाने के बाद आपको मैन्युफैक्चरर से एक्सपोर्ट प्रॉडक्ट की एक निश्चित मात्रा के लिए प्राइस कोटेशन लेना होगा, जो एक निश्चित अवधि के लिए मान्य होगा।
- मैन्युफैक्चरर दो तरह के होते हैं - पहले वे, जो अपना माल शिप तक पहुंचा दे और आप वहां से उसे क्लाइंट तक पहुंचाएं। दूसरे वे, जिनका माल आपको फैक्ट्री से लेकर क्लाइंट तक खुद पहुंचाना हो।
- इसी तरह क्लाइंट भी दो तरह के होंगे - पहले वे, जिनका माल आपको केवल शिप से उतारना हो और वहीं से डिस्ट्रिब्यूटर उसे उठा ले। दूसरे वे, जिनका माल आपको उसके वेयरहाउस तक पहुंचाना हो।
- इसमें आपका कमिशन इसी बात पर निर्भर करता है कि आपका मैन्युफैक्चरर और क्लाइंट पहली तरह का है या दूसरी तरह का। अगर दोनों ही पहली तरह के हैं, तो आपको पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टेशन की पूरी व्यवस्था करनी होगी, जिसमें आपका खर्च बढ़ जाएगा।
- जिस शहर से आपको शिपिंग करनी है, वहां के येलो पेज से आपको फ्रेट फॉरवॉर्डर के बारे में जानकारी मिल जाएगी। इसके लिए कुछ परिचितों से बातचीत करने के बाद ही फैसला करें क्योंकि आपके माल की सही-सलामत डिलिवरी में फ्रेट फॉरवॉर्डर की महत्वपूर्ण भूमिका है।

*कुछ महत्वपूर्ण शिपिंग टर्म्स
*शिपिंग एग्रिमेंट : *
यह एक अहम दस्तावेज है, जिसकी शर्तों का सीधा असर आपके प्राइस कोटेशन और गुड्स की डिलिवरी पर पड़ता है। फ्रेट फॉरवॉर्डर के साथ किए गए आपके इसी एग्रिमेंट के आधार पर यह तय होता है कि आपकी जिम्मेदारियां क्या होंगी, इसलिए इसे अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।

*फ्रेट फॉरवार्डर :*
 यह शख्स आपके लिए शिपिंग और मर्चेंडाइज के अहम चरणों को पूरा करता है। शिपिंग दरें कोट करना, रुटीन इंफॉर्मेशन मुहैया कराना और कार्गो स्पेस बुक करना भी उसी के काम हैं। फ्रेट फॉरवॉर्डर डॉक्यूमेंट्स, कॉन्ट्रैक्ट शिपिंग इंश्योरेंस और सबसे कम कस्टम चार्ज वाले रूट कार्गो की जानकारी तैयार करता है। ये अहम जानकारियां हैं, जिनकी जरूरत आपको माल को फैक्ट्री से फाइनल जगह तक पहुंचाने में पड़ती है।

*बिल ऑफ लैडिंग:* 
जिन गुड्स को शिप किया जाता है, उनकी रिसीट 'बिल ऑफ लैडिंग' कहलाती है। इस पर शिप का एजेंट साइन करता है और इसी से सुनिश्चित होता है कि खरीदार को गुड्स बिल्कुल उसी हालत में मिलेगा, जैसा वह लोडिंग के समय था। शिपिंग एग्रिमेंट और बिल ऑफ लैडिंग के आधार पर ही आपका बैंकर लेटर ऑफ क्रेडिट रिलीज करेगा।

*एफओबी :* 
फ्री ऑन बोर्ड। बेचने वाली पार्टी माल को एक खास पॉइंट तक ले जाने की जिम्मेदारी लेती है, जिसके लिए वह कोई अतिरिक्त चार्ज नहीं करती। वहां से माल आगे ले जाना खरीदने वाली पार्टी की जिम्मेदारी है। जैसे, एफओबी कांडला का मतलब हुआ कि बेचने वाली पार्टी के प्राइस कोटेशन में माल को कांडला पोर्ट तक ले जाने का पूरा खर्च शामिल होगा।

*एफओएस :* 
फ्री अलॉन्ग साइड। इसमें बेचने वाली पार्टी माल को शिप तक पहुंचाने की जिम्मेदारी लेती है। उसके जिम्मे माल शिप पर लोड होने तक उसे सुरक्षित रखने का भी काम होता है। वहां से माल को शिप पर चढ़ाने और उसे आगे ले जाने की जिम्मेदारी खरीदने वाली पार्टी की होती है।

*सीएंडएफ :* 
कॉस्ट एंड फ्रेट। इसमें बेचने वाली पार्टी माल भाड़ा देती है और बायर उसका इंश्योरेंस कराता है। इसके बाद माल की पूरी जिम्मेदारी बायर की होती है।
कुछ और जरूरी बातें

*लेटर ऑफ क्रेडिट :*
यह एक अहम दस्तावेज है, जो सुनिश्चित करता है कि डिस्ट्रिब्यूटर के पास इतना फंड उपलब्ध है, जिससे आपके द्वारा कोट किया गया खर्च पूरा हो सके। यह लेटर ऑफ क्रेडिट इरिवोकेबल होता है यानी इसे रद्द नहीं किया जा सकता। इससे यह भी तय हो जाता है कि डिस्ट्रिब्यूटर आपका ऑर्डर किसी भी समय कैंसल नहीं कर सकता। जब यह लेटर ऑफ क्रेडिट आपके बैंक से कंफर्म कर दिया जाता है, तो डिस्ट्रिब्यूटर को डिलिवरी सुनिश्चित हो जाती है। इस कंफर्मेशन के साथ ही करेंसी एक्सचेंज भी कंफर्म हो जाता है, जिसके बाद आपको डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू में उतार-चढ़ाव के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं होती।

*क्रेडिट इंश्योरेंस :*
यह एक अहम इंस्ट्रूमेंट है, जो आपको खरीदार के डिफॉल्ट या दिवालियेपन से पैदा होने वाले जोखिम से बचाती हैं। यह इंश्योरेंस तीन तरह की सेवाएं देता है : जोखिम से बचाव, कर्ज की वसूली और दावों का भुगतान।

*ईसीजीसी :* 
एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया यानी ईसीजीसी का गठन भारत सरकार ने 1957 में किया था ताकि एक्सपोर्टर्स के क्रेडिट रिस्क को खत्म कर उन्हें बढ़ावा दिया जाए। यह संस्था एक्सोपोर्टर्स को कई सेवाएं देती है, जैसे
- गुड्स और सर्विसेज के एक्सपोर्ट में नुकसान होने पर क्रेडिट रिस्क इंश्योरेंस मुहैया कराना।
- बैंकों और फाइनैंशल इंस्टिट्यूशंस को गारंटी मुहैया कराना ताकि वे एक्सपोर्टर्स को बेहतर सेवाएं दे सकें।
- विदेश में लोन के हिस्सेदार के तौर पर जॉइंट वेंचर बनाने वाली भारतीय कंपनियों को ओवरसीज इनवेस्टमेंट इंश्योरेंस मुहैया कराना।

एक्सपोर्ट प्रमोशन के लिए सरकारी स्कीमें
सरकार ने बहुत-सी एक्सपोर्ट प्रमोशनल स्कीम चला रखी हैं, जिनमें से कुछ हैं- एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुड्स स्कीम, विशेष कृषि एंड ग्राम उद्योग योजना (सीकेजीयूवाई), फोकस प्रोडक्ट स्कीम (एफपीएस), मार्केट लिंक्ड फोकस प्रोडक्ट स्कीम (एमएलएफपीएस), स्पेशल बोनस बेनेफिट स्कीम (एसबीबीएस)
स्कीमों की और जानकारी के लिए आप www.eximguru.com की मदद ले सकते हैं।
सरकार की कई ऐसी एजेंसियां और डिपार्टमेंट हैं, जो एक्सपोर्ट प्रमोशन के लिए काम कर रही हैं:
एग्जिम बैंक ऑफ इंडिया eximbankindia.com
एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल, जिसमें हर सेक्टर के लिए अलग-अलग काउंसिल हैं। इन सभी सेक्टरों की लिस्टcommerce.nic.in/epc.htmपर पा सकते हैं।
इंडियन ट्रेड प्रमोशन ऑर्गनाइजेशन (आईटीपीओ) www.indiatradefair.com
*Be Motivated* *Stay Motivated*

* एक्सपोर्ट इंपोर्ट*Exime Business नवभारत टाइम्स |

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